". wysiwyg Layout True Love story of shiv and sati ji

True Love story of shiv and sati ji

आज के इस ब्लॉग में मैं बताऊंगी अपने महादेव जी के बारे में जो मुझे हर पल अपने होने का एहसास कराते हैं चाहे कोई मेरे साथ हो या ना हो वह मुझे मेरे साथ है यह भी किसी ना किसी तरीके से बताते हैं ऐसे ही नहीं सतीजी ने महादेव जी के लिए अपने प्राणों को त्याग दिया था और महादेव जी उनके जलते हुए शरीर को लेकर किस प्रकार पागलों की तरह जगह-जगह भटक रहे थे चलिए आज उन्हीं के बारे में इस ब्लॉग में विस्तार से जानते हैं
जैसा कि आप सब जानते होंगे की सती माता दक्ष की 60 पुत्रियो  में से एक थी दक्ष जी की जब कई पुत्रियां हो चुकी थी तो उनके मन में यह बात आती है कि उन्हें एक ऐसी पुत्री भी चाहिए जो सर्वगुण संपन्न हो इसके बाद उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की  और उन्हें पुत्री के रूप में सती जी प्राप्त हुई।

सती माता जैसे जैसेबड़ी होती गई वैसे वैसे उनके मन में शिवजी के प्रति आस्था और भी बढ़ती चली गई वह अपनी बहनों के साथ में प्रतिदिन वन में जाया करती थी जहां पर एक शिवलिंग स्थापित थी वह शिवलिंग को देखकर शिव जी को अपने आसपास होने का अनुभव किया करती थी परंतु उनके पिता दक्ष को शिवजी बिल्कुल भी पसंद नहीं थे परंतु होनी को कौन टाल सकता है और विधाता के लिखे लेख के बाद सती और शिव जी का विवाह काफी विवादों के बाद हो ही जाता है 
विवाह संपन्न होने के बाद भी शिव जी कभी भी दक्ष प्रजापति को पसंद नहीं आए यही वजह थी कि उन्होंने विवाह के उपरांत अपनी पुत्री सती से कोई मतलब नहीं रखा एक बार तो यह हुआ की राजा और मंत्रियों की भरी सभा में शिव जी भी बैठे हुए थे दक्ष प्रजापति जब सभा में जाते हैं तो सभी उनके आदर में खड़े हो जाते हैं परंतु शिवजी नहीं खड़े होते हैं क्योंकि वह रिश्ते में उनके दामाद भी थे यह बात दक्ष प्रजापति को फूटी आंख नहीं पसंद आई और उन्होंने बदला लेने का प्रण कर लिया और कुछ समय पश्चात उन्होंने अपने घर पर एक विशाल यज्ञ का आयोजन करवाया और इस आयोजन में उन्होंने अपनी सारी पुत्रियों को आमंत्रित भी किया शिवाय सती जी को छोड़कर सती माता शिव जी के साथ में कैलाश पर्वत पर बैठी हुई थी इसी बीच काफी सारे वाहनों को जाता देख उन्होंने शिव जी से पूछा की प्रभु यह वाहन कहां की तरफ जा रहे हैं तो शिवजी ने बताया कि आज तुम्हारे पिता दक्ष ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया है 



यह बात जानकर सती माता थोड़ा दुखी भी हुई और खुशी भी हुई और उन्होंने शिवजी के सामने वहां जाने का प्रस्ताव रखा परंतु शिवजी ने उनको समझाया कि सती बिना बुलाए कहीं भी नहीं जाना चाहिए फिर चाहे वह तुम्हारा स्वयं का घर ही क्यों ना हो परंतु सती माता ह ठ कर गई उन्होंने बोला कि वह उनका मायका है और वहां जाने के लिए उन्हें किसी की आमंत्रण की जरूरत नहीं है शिव जी के काफी समझाने के पश्चात भी जब सती माता नहीं मानी तो उन्होंने तो उन्होंने नंदी और अन्य गणों के साथ में सती माता को दक्ष के यज्ञ में शामिल होने के लिए भेज दिया वहां जाने पर सती माता से कोई भी प्रेम पूर्वक बात नहीं करता है सती की माता उनसे बात करने का प्रयास तो करती है परंतु अपने पति दक्ष के भय के कारण वह भी अपनी पुत्री के प्रति प्रेम को प्रदर्शित नहीं कर पाती हैं थोड़ा समय बीतने के बाद वह देखती हैं कि पूरे यज्ञ में सभी देवी देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित होती है किंतु शिवजी का कहीं कोई चित्र नहीं है यह बात उनके हृदय को द्रवित कर देती है और वह अपने पिता से कहती हैं कि बिना शिव के आपका यह यज्ञ सफल कैसे हो सकता है वह देखती है कि वहां पर विष्णु जी और ब्रह्मा जी भी उपस्थित हैं ऐसे में सती माता का क्रोध और बढ़ गया और वह ब्रह्मा जी और विष्णु जी से प्रश्न करती है कि बिना मेरे शिव के आप यहां कैसे आ सकते हैं।
परंतु विष्णु जी और ब्रह्मा जी बिना कुछ उत्तर दिए अपने सर को झुका लेते हैं क्योंकि विष्णु जी पहले से ही वचनबद्ध हो चुके थे कि वह दक्ष के यज्ञ की रक्षा करेंगे इस वजह से वह ना चाहते हुए भी वहां पर मौजूद हुए सती माता आत्मग्लानि से भर उठती हैं और उन्हें मन ही मन एहसास होता है कि उनसे घोर पाप हो गया है जहां उनके पति का बिल्कुल भी सम्मान नहीं है वहां वह कैसे आ गई और अब किस मुंह से उस शिवजी के सामने जाएंगी और क्या बताएंगे कि वहां पर उनके पति का कितना अपमान किया गया यही सोचकर वह अपने आप को जलते हुए यज्ञ कुंड में समाहित कर देती हैं अपने विकराल रूप धारण करते हुए वह जलना आरंभ हो जाती हैं यह देखते ही पूरे यज्ञ मैं हलचल मच जाती है देखते ही देखते आयोजन का माहौल विध्वंस में बदल चुका था सती माता का जलता हुआ शरीर देख नंदी गढ़ पागल हो उठे थे यह खबर जैसे ही शिव जी को प्राप्त हुई उन्होंने क्रोध बस अपने सिर का एक बाल तोड़ कर कैलाश पर फेंका जिसस
 वीरभद्र नामक गढ़ का जन्म हुआ और शिव जी ने वीरभद्र को आदेश दिया कि वह दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर डालें उसके कुल का विनाश कर डालें वीरभद्र ने देखते ही देखते सभी को पराजित कर सब तोड़फोड़ कर डाला और यही नहीं उसने तांडव करते हुए दक्ष का सर भी धड़ से अलग कर दिया फिर क्या था शिवजी पागलों की तरह अपनी सती का जलता हुआ शरीर लेकर इधर-उधर दौड़ने लगते हैं शिव जी के इस विकराल रूप को देखकर सारे देवता थरथर कांपने लगते हैं सारी दिशाएं अपना रुख बदल लेती हैं शिव जी पागलों की तरह विलाप करते हुए सती माता को लेकर निकल पड़ते हैं उनके इस क्रोध आवेश के कारण पृथ्वी पर जीवन रुक जाता है जिससे चारों तरफ हलचल मच जाती है मनुष्य त्राहिमाम करने लगता है ऐसे में विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से सती जी के शरीर पर प्रहार किया जिससे उनके शरीर के कई टुकड़े हो गए और वह कई टुकड़े शिव जी के हाथों से निकलकर 108 जगह जगह जा जाकर गिरे यह वही तो टूकड़े हैं जो आज 108 शक्तिपीठ के नाम से जाने जाते हैं।
जैसे ही सती माता का पूरा शरीर शिव जी के हाथों से छूट जाता है वह उसी स्थान पर समाधि लगा कर तपस्या में लीन हो जाते हैं ऐसा ही था मेरे शिव और सती जी का प्रेम तो यह थी दुनिया की सबसे पहली प्रेम कहानी सबसे निराली सबसे अनोखी और अद्भुत मैं अपने शिवजी  के बारे में जितना कहूं उतना कम है।


और भी बहुत कुछ बताऊंगी आने वाले अगले ब्लॉग में आपके शिवजी के बारे में कि कैसे सती जी के बाद माता पार्वती ने उनको कई सालों की मेहनत के बाद अपना बनाया था
जय महादेव

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