सती माता ने अपने पिछले शरीर को त्यागने के बाद हिमालय और मैना के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया हिमालय पर्वतराज की पुत्री होने के कारण उनका नाम पार्वती पड़ा
माता पार्वती जैसे-जैसे बड़ी होती चली गई उनकी भी आस्था और भक्ति शिव जी के प्रति अटूट रूप लेती चली गई।
अब माता पार्वती बड़ी हो चुकी थी तो ऐसे में उनके पिता हिमालय पर्वतराज को उनके विवाह की चिंता होने लगी इस विषय पर वार्तालाप करने के लिए उन्होंने श्री नारद जी से पार्वती जी के विवाह के उपलक्ष में बात करी।
श्री नारद मुनि ने माता पार्वती को देखते ही हिमालय से कहा कि आप व्यर्थ की चिंता करते हैं पार्वती के वर कोई और नहीं स्वयं देवों के देव महादेव होंगे, यह सुनकर हिमालय और मैना प्रसन्नता से गदगद हो उठते हैं
एक बार महादेव जी भ्रमण करते हुए हिमालय की बगिया में बैठ जाते हैं हिमालय पर्वत राज को जैसे ही इस बात का संज्ञान प्राप्त होता है वह शीघ्र ही पार्वती को आदेश देते हैं कि वह शिव जी की सेवा करेंगी माता पार्वती पूरे विधि-विधान और मन से शिवजी को प्रसन्न करने के लिए सारे यत्न करना प्रारंभ कर देती हैं परंतु महादेव जी ने उन्हें एक बार भी दृष्टि उठाकर नहीं देखा।
पार्वती जी की इस प्रकार की सेवा और भक्ति से महादेव जी के मन में यह बात आई कि यह मुझे मेरी तपस्या करने में अवरोध उत्पन्न करेंगी यह सोचकर वह उस स्थान को त्याग कर अन्यत्र चले जाते हैं माता पार्वती को जैसे ही इस बात का ज्ञान होता है वह विचलित होती है कि अवश्य ही उनकी पूजा में कोई कमी रह गई थी जिसकी वजह से शिवजी वहां से चले गए अब उन्होंने सबके समक्ष यह प्रण कर लिया की वह घनघोर तब करें गी।
पार्वती जी का यह प्रण सुनकर पहले तो हिमालय और उनकी पत्नी मैना यह सोचते हैं कि पार्वती पता नहीं तप कर पाएंगी या नहीं परंतु वह अपनी पुत्री को आज्ञा दे देते हैं पार्वती बगिया में उसी स्थान पर बैठकर तप करना प्रारंभ कर देती हैं उनके तप में इतना अोज था कि देवताओं के सिंहासन हिल जाते हैं उनके तपोवल की वजह से उनके सर से एक अद्भुत अनोखी रोशनी निकलती है जो चारों दिशाओं में फैल जाती है
उधर दूसरी ओर एक राक्षस ने पृथ्वी लोक पर हाहाकार मचा रखा था परंतु वह राक्षस बहुत ही पराक्रमी था उसने कठोर तपस्या करने के पश्चात ईश्वर से वरदान ले रखा था कि उसे केवल शिवजी का पुत्र ही मार सकता है ऐसे में देवताओं की समस्याएं और बढ़ चुकी थी और वह परेशान हो रहे थे कि कैसे भी करके शिवजी अपनी आंखे खोलो और माता पार्वती जी से विवाह करें ताकि उनका पुत्र आगे चलकर उस राक्षस को मार सके
ऐसे में ब्रह्मा जी और अन्य देवता गण शिव जी की तपस्या को भंग कराने के लिए कई प्रकार के उपाय करते हैं किंतु शिव जी को जब कोई फर्क नहीं पड़ता है तब एक गढ़ मौसम को परिवर्तित करके शिवजी की निद्रा भंग कर देता है जिससे शिव जी की तपस्या भंग होती है और उनके नेत्र खुलते ही वह गढ़ भस्म हो जाता है तत्पश्चात सारे देवता उन्हें उस राक्षस के बारे में अवगत कराते हैं और साथ ही माता पार्वती से विवाह करने के लिए आग्रह करते हैं अब शिवजी माता पार्वती की परीक्षा लेने के लिए माता पार्वती के समक्ष एक साधु के भेष में जाते हैं और शिव जी की बुराई करना प्रारंभ कर देते हैं माता पार्वती कुछ देर धैर्य के साथ सुनने के बाद क्रोध में आकर कहती हैं कि आप एक साधु है इसलिए मैं आपको कुछ नहीं कह सकती हूं किंतु मैं अपने शि व के बारे में एक भी कठोर शब्द भी नहीं सुन सकती हूं और अब मैं अपने शरीर को अग्नि में समाहित कर दूंगी क्योंकि मैं अपने महादेव के अपमान का एक शब्द सुनने के बाद जीवित नहीं रह सकती हूं यह सुनते ही महादेव जी अपने असली रूप में आते हैं और पार्वती जी से वरदान मांगने के लिए कहते हैं माता पार्वती शिवजी से वचन लेती हैं कि आप उन्हें उनके घर से उनके माता-पिता से मांगे जाकर
क्योंकि महादेव जी हमेशा सबको देते हैं कभी भी मांगते नहीं हैं तो ऐसे में माताजी ने उनके समक्ष यह शर्त रखी कि आपको उनके घर जाकर उनका हाथ मांगना पड़ेगा।
महादेव जी अब वचनबद्ध हो चुके थे तो है अपने कहे वचन के अनुसार पार्वती जी के घर एक मदारी का भेज बनाकर बंदर नचाने का कार्य करने लगते हैं पार्वती जी के पिता हिमालय मदारी के द्वारा दिखाए गए बंदरों के करतब से बहुत प्रसन्न होते हैं और मदारी से कहते हैं मांगो क्या मांगते हो ऐसे में मदारी के भेष में गैस शिव जी ने हिमालय राज से कहा मुझे आपक पुत्री पार्वती का हाथ चाहिए
हिमालय राज को बड़ा क्रोध आता है कि एक साधारण सा मदारी कि यह हिम्मत कि वह मुझसे मेरी पुत्री का हाथ मांगे ।
हिमालय राज मदारी को मना कर देते हैं और शिव जी अपने कैलाश पर्वत पर वापस आ जाते हैं किंतु जब हिमालय राज को यह बात पता चलती है कि साक्षात शिव जी एक मदारी के रूप में आकर पार्वती जी का हाथ मांग रहे थे तो उन्हें बहुत ही अफसोस महसूस होता है किंतु बिना समय व्यर्थ करें वह शिवजी के समक्ष जाते हैं और कहते हैं कि कृपया करके आप मेरी पुत्री से विवाह करें और मेरे घर बरात लेकर आए तो इस प्रकार से शिव जी एक बार फिर से सती जी के दूसरे अवतार पार्वती जी के हो जाते हैं...............
अगले ब्लॉग में जानेंगे कि उनके पुत्र कार्तिकेय ने राक्षस को मारा और किस प्रकार कार्तिकेय जी का पालन-पोषण हुआ जय महादेव.......
2 Comments
Finally shaadii ho gyi na...
ReplyDeleteYes,they find each other....
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