आज से कुछ साल पहले मै जब एक स्कूल में पढाती थी वहां की व्यस्त और भागमभाग
वाली दिनचर्या की वजह से कोई भी टीचर आपस में जुड़ नहीं पाती थी और यदा कदा जब भी थोड़ा फ़्री टाइम मिलता था तो स्टाफ रूम की घंटी बजती और उधर से आवाज आती मैडम ,आप 10t में चली जाए वहां टीचर नहीं है कोई🙎 गुस्सा तो बहुत आता था। पर क्या करे जाना तो होगा ही। बस ऐसी ही थी यहां की जिंदगी ना कोई अटैचमेंट ना दोस्ती बस ड्यूटी,
कुछ महीने के बाद अाई एक नई साइंस की टीचर (अंजुला )मैडम। लंच के दौरान वो मेरे सामने होती, मेरी तो हिम्मत नहीं होती थी बात करने की देखने में सख्त मिजाज की ऐसे में,
मै चुपचाप अपना खाना खत्म करती और अपने फोन को या वहां रखी किताबों को देखने लगती थी
कभी-कभी सामान्य रूप से उनको देखकर गुड मॉर्निंग या एक इस्माइल जरूर कर देती थीं और फिर भी एक वही थी,जो पूरे स्टाफ में मुझे समझ में आती थी सिंपल सी, पर उनकी बातें आपको बहुत प्रभावित कर दे,
उन्हीं में से है एक मेरी अंजुला मैडम ,
हां ,ज्यादा तो किसी से बात नहीं करती थी पर तिमाही की पेपर्स के बाद हम साथ में बैठ कर कॉपी चेक करने लगे ,और हमारी ड्यूटी भी अगल बगल के रूम में लगी ,
जिसकी वजह से हम बाते करने लगे और शुरू हुई ,खूब सारी बाते और हसी मजाक का सिलसिला, अब अगले दिन जैसे ही मैं स्कूल जाती तो उनके आने का इंतजार करती ,और फिर अपने अपने क्लास में,
स्टाफ रूम के कुछ लोगों को ये दोस्ती अच्छी भी नहीं लग रही थी,तो ऐसे में कुछ ही दिनों में मेरा शेड्यूल दूसरी ब्रांच में कर दिया गया पर हम दोनों तो बेले थे ,
सामने कि बिल्डिंग में वो जब क्लास में होती वही दूर से वो भी हस देती और मै भी खुश हो जाती ,फिर हम साथ चाय पीते समोसे खाते और एक कप चाय से क्या होता तो बैठे बैठे दो या उससे ज्यादा चाय भी पी जाते थे अब तो कैंटीन वाले भैया भी जान चुके थे, कि इस टाइम चाय जानी है,
और फिर मैडम से दीदी बन गई,उनकी बाते इतनी अच्छी और सटीक कि सुनकर मज़ा आ जाए ,आप उन्हें घंटो सुन ले ,और हसी एक दम खिलखिलाई हुई,और ऊपर से हम दोनों का साथ कभी कभी हम बिना बात किए ही एक दूसरे की बात को समझ लेते थे और हस देते थे,एक वही थी जो मेरी लंच ड्यूटी पर मेरा साथ देती थी, इस मॉर्डन दुनिया और फैशन की उधेड़बुन में वो धन्य थी,
उनका एक ही रूप था,
बीच की मांग पूरा सिंदूर और गोल बिंदी,और जब सारे टीचर १५ अगस्त को रंगबिरंगे कपड़ों में होते,लेकिन वो रोज की तरह आती थी,और उस पर भी उनकी बाते , कम शब्दों में सामने वाले की बोलती बन्द करना उनसे सीखे कोई,
फिर वो चली गई स्कूल से कुछ जरूरी कामों कि वजह से उनके कुछ समय के बाद मैंने भी स्कूल जाना बन्द कर दिया,और अब तो मेरी वो बहुत अच्छी दीदू बन चुकी हैं,
इस समय वो एक गवर्मेंट टीचर बन चुकी है
और जब कभी गांव की महिलाओ की तरह साड़ी पहन कर बाहर कार चला कर भी चली जाती है और उन्हें नहीं फर्क कि मेरे इस पहनावे पर कोई क्या प्रतिक्रिया देगा,उन्हें तो बस वही, साधारण चीजे ही पसंद है।
आप उन्हें दिल्ली भेजे या मुंबई वो वेसी ही रही,और उनकी यही बाते मुझे हमेशा प्रेरित करती हैं,ऐसी ही है
मेरी दिदू,मेरी भारतीय नारी जो सब पर भारी,
1 Comments
Wow superb....actully not only Anjula ma'am bt also u both r vie swt & talented.....& u r my all tym fvrt DI.
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