एक लड़की जिसकी शादी उन्नीस साल में हो गई,उसे अभी ठीक से बहू और जिम्मेदारी क्या है कुछ पता नहीं,पर उसकी इस उम्र और उसकी सोच से ससुराल वालो को क्या लेना देना,उन्हें तो सर्वगुण सम्पन्न बहू चाइए,ऐसे में वो चुपचाप कोशिश पूरी करती कि कुछ गलत ना हो,
हा शुक्र है प्रभु का की उसको पढ़ने का बहुत शौक़ था,ऐसे में उसका दिन काम और पढ़ाई के बीच कब खतम होता पता भी नहीं चलता,उसका बहुत मन था कि वो एक न्यूज एंकर बने, पर ये आसन डगर नहीं थी,फिर भी उसने अपने पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद (mass communication) भी करने का फैसला लिया और अच्छे नंबरों के साथ उसने पास आउट किया,पर कोई फायदा नहीं हुआ था
उसकी इस डिग्री का वो देखने के काम ही अाई,उसके बाद सलाह देने वालो ने उसे टीचिग कि लाइन में जाने की राय दी,जिसमें तो उसको कभी जाना ही नहीं था,पर कहते है ना
भागते भूत की लंगोटी भली
उसने बड़े बेमन से कर डाला बी. एड और फिर वही छोटे पूरे एग्जाम जैसे किसी के मरने के बाद तेरहवीं जरूरी होती है ,
वैसे बी.एड के बाद के छोटे छोटे पहलू ,उनको भी पास करके कोई विशेष फायदा नहीं हुआ ,
धीरे धीरे समय तो गुजर रहा था और बदल रही थी चीजे मानसिक स्थिति जो उन्नीस साल में थी वो अब नहीं थी, वो डर और वो बाते कि किसने कहा शादी के बाद पढ़ाई करो ,
इन सारी बातों को सुनने कि सेहनशीलता भी अब कम हो चुकी थी
और बदल चुकी थी वो लड़की, पर ये बदलाव इतनी जल्दी कहा किसी को हजम होने वाला था वो साड़ी से सूट में आ चुकी थी,घर के कुछ लोगो को तो ये बदलाव फूटी आंख नहीं पसंद आ रहा था,अब वो उनके बताए हुए कपड़े नहीं पहन रही थी,
अब वो उनके बनाए हुए सारे वही नियम नहीं मांन रही थी शायद वो भी जान चुकी थी कि जीवन का अंत हो जाएगा पर उसको उसके बलिदानों का श्रेय कभी नहीं मिलेगा ,
बदल लिए उसने भी अपने नियमों को जो एक बहू के लिए सही और बेटी की लिए गलत होते थे
,वही नियम जो ये तय करते है
कि बेटी साड़ी पहन कर कहीं जाएगी तो गर्मी से परेशान होगी,पर बहू सूट पहन लेगी तो ,तुम्हारे पास सड़िया नहीं है अब वाला ताना ,
वो नियम जो ये बताते है कि बेटी को बच्चा होने पर अपने घर पर रखना पसंद करते है,और बहू से कहते है कि ऐसी हालत में कहीं जाना नहीं चाइए,
छोटे छोटे और भी बहुत सारे नियम है ऐसे जो सिर्फ दूसरे घर की बेटी के लिए होते है,
ये सिर्फ हमारे दोगले समाज में ही हो सकता है कि बहू नौकरी करके घर आए तो कोई अहसान नहीं पर बेटी आए तो थकी अाई होगी
कहा से आते है ऐसे होशियार लोग और होशियार औरतें जो ये कह देती है कि ये तुम्हारा घर नहीं जो अपने मन की करोगी,उनके चरण कहा है,उन नेताओं से कोई ये पूछे घर तो ये उनका भी नहीं है
वो भी किसी घर से
अाई है।फिर लड़की को ये भी ताने की वो इस घर को अपना नहीं मानती करे तो करे क्या घर मेरा नहीं है पर जिम्मेदारियां मेरी, घर में क्या खत्म हो रहा से लेकर क्या बनना है सब तय करना है पर उनके बनाए नियमों के अनुसार, ऐसी मताओ से यही गुजारिश है।कि जियो और जीने दो.अपनी सास का बदला उन बच्चिओ से ना ले,और कोई भी बुजुर्ग क्या चाहता है सम्मान ,प्यार और अच्छा खाना ,ये सब तो आपको मिलेगा ही फिर आपको २+३ कि जगह ३+२ क्यों करना है दोनों का उत्तर समान है,तो पहले दाल बन जाय या चावल बनने तो दोनों है 🤭
इस पर भी कहा चैन लोगो को अगर बहू बाहर से आती है और काम करे तो कौन सा अहसान किया है और ये तो फर्ज है कहकर टाल दिया जाता है,
ऐसे बहुत सारी बाते है जो हर औरत को अपनी जिंदगी में देखनी और सुननी पड़ जाती है,सुनने और सेहन करने की ये आदत गलत नहीं है पर गलत होते है
वो लोग जो इस आदत का फायदा उठा लेते है,माना हर लड़ाई बहस और शस्त्रों से नहीं जीती जाती, पर अधिकता किसी भी चीज कि आपको तकलीफ देगी ,यदि आप गलत नहीं है तो क्यों सुनना और सहना ....... मै नहीं सेह सकती ये दोगले नियम ।🤗
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