यह है श्री महाकालेश्वर की ज्योतिर्लिंग।🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
उज्जैन प्राचीन काल में उज्जयिनी के नाम से विख्यात था इसे अवंतिकापूरी भी कहते थे यह भारत की परम पवित्र सप्तपुरियो में से एक है
इस ज्योतिर्लिंग की कथा पुराणों में इस प्रकार बताई गई है की प्राचीन काल में उज्जैनी में राजा चंद्रसेन राज्य करते थे वह भगवान शिव के परम भक्त हुआ करते थे एक दिन श्रीकर नामक एक 5 वर्ष का ग्वाला बालक अपनी मां के साथ उधर से गुजर रहा था राजा का शिव पूजन देखकर उसे बहुत विश्व में और कोतुहुल हुआ।
वह स्वयं उसी प्रकार की सामग्रियों से शिव पूजन करने के लिए लालायित हो उठा सामग्री का साधन न जीत पाने पर लौटते समय उसने रास्ते से एक पत्थर का टुकड़ा उठा लिया घर आकर उसी पत्थर को शिव रूप में स्थापित कर पुष्प , चंदन आदि से परम श्रद्धा पूर्वक उसकी पूजा करने लगा।
और जब उसकी माता भोजन करने के लिए बुलाने आई तो वह पूजा छोड़कर उठने के लिए किसी भी प्रकार से तैयार नहीं हुआ ।
अंत में माता ने गुस्सा आकर पत्थर का है टुकड़ा उठाकर दूर फेंक दिया इससे बहुत ही दुखी होकर मैं बालक जोर-जोर से भगवान शिव को पकड़ता हुआ रोने लगा रोते-रोते अंत में बेहोश होकर वहीं गिर पड़ा बालक की अपने प्रति यह भक्ति और प्रेम देखकर आशुतोष भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हो गए बालक ने जीवन होश में आकर अपने नेत्र खोले तो उसने देखा कि उसके सामने एक बहुत ही भव्य और अति विशाल स्वर्ण और रत्नों से बना हुआ मंदिर खड़ा है उस मंदिर के भीतर एक बहुत ही प्रकाश पूर्ण भास्कर तेजस्वी ज्योतिर्लिंग खड़ा है।
बच्चा प्रसन्नता और आनंद से विभोर होकर भगवान शिव की स्तुति करने लगा माता को जब यह समाचार मिला तब वह दौड़ कर अपने प्यारे लाल को गले से लगा लिया पीछे राजा चंद्रसेन भी भक्ति और सिद्दीकी सराहना करने लगे धीरे-धीरे वहां बड़ी भीड़ जितने लगी इतने में उस स्थान पर हनुमान जी प्रकट हो गए
उन्होंने कहा मनुष्य भगवान शंकर शीघ्र फल देने वाले देवताओं में सर्वप्रथम है इस बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने इसे ऐसा फल प्रदान किया है जो बड़े-बड़े ऋषि मुनि करोड़ों जन्मों की तपस्या से भी प्राप्त नहीं कर पाते इस गो बालक की आठवीं पीढ़ी के धर्मात्मा नंदगपाल का जन्म होगा।
द्वापर युग में भगवान विष्णु कृष्ण अवतार लेकर उनके यहां तरह-तरह की लीलाएं करेंगे हनुमान जी इतना कहकर अंतर्ध्यान हो गए उस स्थान पर नियम से भगवान शिव की आराधना करते हुए अंत में श्री कर गोप और राजा चंद्रसेन शिवधाम को चले गए।
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में एक दूसरी कथा इस प्रकार कहीं जाती है कि किसी समय अवंतिकापुरी उज्जयिनी में वेद पाठी तपोनिष्ठ एक अत्यंत तेजस्वी ब्राह्मण रहते थे
1 दिन दूसड नामक एक अत्याचारी असुर उनकी तपस्या में विघ्न डालने के लिए वहां आया ब्रह्मा जी के वर से वह बहुत शक्तिशाली हो गया था।
उसके अत्याचारों से चारों ओर त्राहिमाम मची हुई थी ब्राह्मण को कष्ट में पड़ा देखकर प्राणी मात्र का कल्याण करने के लिए भगवान शंकर वहां प्रकट हो गए उन्होंने एक हुंकार मात्र से उस अत्याचारी दान को वही जलाकर भस्म कर दिया।
भगवान शिव वहां महारुद्र के साथ प्रकट हुए थे इसलिए उनका नाम महाकाल पड़ गया इसीलिए इस परम पवित्र ज्योतिर्लिंग को महाकाल के नाम से जाना जाता है महाभारत शिव पुराण स्कंद पुराण मैं इस ज्योतिर्लिंग की महिमा को पूरे विस्तार के साथ भी वर्णन किया गया है। इसी प्रकार बाबा शिव जी सबकी मनोकामना पूरी करे
हर हर महादेव
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