इस स्थान पर नर्मदा के दो धाराओं में विभक्त हो जाने से बीच में टापू सा बन गया है इस टापू को मांधाता पर्वत शिवपुरी कहते हैं नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तर और दूसरी दक्षिण होकर बहती है दक्षिणावली धारा ही मुख्यधारा मानी जाती है इसी मांधाता पर्वत पर श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर स्थित है पूर्व काल में महाराज मांधाता ने इसी पर्वत पर अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था इसी से इस पर्वत को मांधाता पर्वत कहा जाने लगा इस ज्योतिर्लिंग मंदिर के भीतर दो कोठिरियों से होकर जाना पड़ता है ।
भीतर अंधेरा रहने के कारण यहां निरंतर प्रकाश जलता रहता है ओमकारेश्वर लिंग मानव निर्मित नहीं है स्वयं प्रकृति ने इसका निर्माण किया है इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है संपूर्ण मांधाता पर्वत ही भगवान शिव का रूप माना जाता है इसी कारण इसे शिवपुरी भी कहते हैं लोग भक्ति पूर्वक इस की परिक्रमा करते हैं कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां बहुत बड़ा मेला लगता है यहां लोग आकर भगवान शिव जी को चने की दाल चढ़ाते हैं रात्रि में शयन आरती का कार्यक्रम बड़ी भव्यता के साथ होता है तीर्थ यात्रियों को इनके दर्शन अवश्य करने चाहिए इस ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दो स्वरूप है एक को अमलेश्वर नाम से जाना जाता है यह नर्मदा के तट पर ओमकारेश्वर से थोड़ी दूर हटकर है प्रथक होते हुए भी यह दोनों की गणना 1 में की जाती है।
लिंग कि दूसरों को होने की कथा पुराणों में इस प्रकार दी गई है एक बार विंध्य पर्वत ने पार्थिव अर्चना के साथ भगवान शिव की 6 महीने तक कठिन उपासना की उनकी उपासना से प्रसन्न होकर भूत भावन शंकर जी वहां प्रकट हुए उन्होंने विंध्य को उनके मनोवांछित वर प्रदान किए विंध्याचल की ईश्वर प्राप्ति के अवसर पर वहां बहुत से ऋषि और मुनि भी पधारे उनकी प्रार्थना पर शिवजी ने अपने ओमकारेश्वर नाम के लिंग को दो भाग किए एक का नाम ओमकारेश्वर और दूसरे का अमलेश्वर पड़ा दोनों लिंगों का स्थान और मंदिर प्रथक प्रथक होते हुए भी दोनों की सत्ता और स्वरूप एक ही मानी जाती है शिव पुराण में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है श्री ओंकारश्वर और श्री अमलेश्वर दर्शन का पुण्य बताते हुए नर्मदा स्नान के पावन फल का भी वर्णन किया गया है
प्रत्येक मनुष्य को इस क्षेत्र की यात्रा अवश्य ही करनी चाहिए लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के उत्तम फलों की प्राप्ति भगवान ओमकारेश्वर की कृपा से सहज ही हो जाती है अर्थ धर्म काम मोक्ष के सभी साधन उसके लिए सहज सुलभ हो जाते हैं अतः उसे महा धाम महादेव भगवान शिव की परमधाम की प्राप्ति भी हो जाती है भगवान शिव के भक्तों पर अकारण ही कृपा करने वाले हैं वह तो दानी है।
फिर जो लोग यहां आकर उनके दर्शन करते हैं उनके सौभाग्य के विषय में कहना ही क्या है उनके लिए तो सभी प्रकार के उत्तम पुणे मार्ग सदा सदा के लिए खुल जाते हैं ऐसे ही है मेरे महादेव हर हर महादेव
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