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Son or daughter...both are equal

मेरी बेटी को गोद में खिलाते हुए मोहल्ले की आंटी जी बोली बहू, परेशान मत होना अगली बार भगवान चाहेगा तो बेटा देगा ।आंटी जी चाय पीओ और निकलो ना किसने, कहा आपको की, मै परेशान हू अभी उन आंटी जी की बातें चल ही रही थी की एक और महान आत्मा ने प्रवेश किया उन्होंने कुछ बातों के बाद में मेरी बेटी को लिया और बड़े प्यार से बोली बस अब जल्दी से भैया और आ जाए। अभी मैं 3 दिन की बेटी को ठीक से मैं निहार भी नहीं पाई थी क्यों उसके लिए भाई की प्लानिंग तैयार हो चुकी थी पर क्यों मैं नहीं कहती भाई जरूरी नहीं होते हैं पर यह क्या बात हुई क्या आप मुझे सहानुभूति जाताये और यह एहसास कराएं की बेटी पैदा करके मैंने बहुत बड़ा अपराध कर दिया है या बेटी पैदा होकर मैं जीवन भर परेशान होने वाली हूं और बेटा हो जाएगा तो मेरी परेशानियां खत्म हो जाएगी यह कौन सी सोच होती है माना बेटा और बेटी दोनों जरूरी होते हैं पर मैं भी अपनी मां की बेटियों में से एक हूं उन्होंने जब हम बेटियों में कभी भेदभाव नहीं करा तो कैसे कर लूं मैं? और सबसे जरूरी बात बेटी नहीं होगी तो बेटा कहां से आएगा दोनों ही जरूरी है पर शायद ही लिंग भेद पूरी तरीके से कभी समाप्त हो पाए चाहे कितना भी आगे बढ़ जाए जमाना कहने के लिए हम 21वीं सदी में है पर फिर भी अभी भी ऐसे महान लोग मौजूद हैं दो बेटियां होने के बाद भी बेटे की आस में चार बेटियां पैदा कर लेते हैं और उसके बाद उन्हें वह समझ कर जल्दी-जल्दी किसी भी घर में व्याह देते हैं। मैंने तो कई लोगों के मुंह से यह भी सुना है वही लोग जो बहुत अधिक पढ़े लिखे होते हैं और जो बेटा ना होने पर एक औरत को दोषी मानते हैं कि तुम मेरे घर को एक वारिश भी नहीं दे पाए तो उन्हें कोई जाकर बताएं कि बेटा या बेटी होना आदमी पर निर्भर करता है पर उन्होंने तो जीव विज्ञान की जगह सामाजिक विज्ञान पढ़ रखा है वह भी वह वाला जिसमें उनके खुद के बनाए हुए घटिया नीति घटिया बातें और दोगली टाइप की पंचायतें होती हैं उन्हें बेटा हर हाल में चाहिए चाहे औरत मर क्यों ना जाए चाहे औरत के सारे की स्थिति कैसी भी हो पर बेटा जरूर होना चाहिए क्योंकि वही तो है जो मोक्ष प्राप्त करवायेगा । मैंने समाज में अक्सर उन लोगों को अकड़ दिखाते हुए देखा है जिंदगी सिर्फ बेटे होते हैं वह बेटे भले ही उन्हें घर में कुछ ना समझते हो पर अहंकार ऐसा होता है उनमें जैसे दो बेटे नहीं दो राष्ट्रपति एक ही घर में शपथ दिला कर बनवा दिए गए हो। और बेटा द्वारा कही गई सारी गलतियों को ऐसे माफ करते हैं और अंत में बोलते हैं क्या करें घी का लड्डू टेढ़ा मेढ़ा ही सही मतलब वह ठीक है लड्डू है चाहे वह भी खाने के बाद उनकी सेहत ही क्यों ना खराब हो और वह लड्डू की क्या बना है और तेरा मेरा भी है तो जिंदगी के लिए जरूरी बहुत है चाहे वह आपका हाजमा क्यों ना खराब कर दे गुस्सा तो बहुत आता है बेहूंदा टाइप की बातें सुनती हूं । मैं मानती हूं यह घर में यदि भाई और बहन दोनों होते हैं तो दोनों रिश्ते मिल जाते है मुझे बहुत नफरत है ऐसे लोग और ऐसी सोच वाले लोगों से जो यह दूसरे लोगों को कहते रहते है कि जल्दी बेटा होगा किसने मांगी आपसे सलाह कहा से आते है ये लोग किसने कहा आप सहानुभूति दे और किस बात की, भगवान ने दो है तो रूप बनाए है बेटी या बेटा यही तो होगा ऐसा तो नही कि कुछ अलग हुआ है

मुझे अफसोस है उन सारी औरतों के लिए जो आज भी ऐसे मनगढ़ंत विचारों का शिकार बनती आ रही हैं और बेटे की चाह में मानसिक और शारीरिक रूप से रोज प्रताड़ित करे जाते हैं

मैं यह भेदभाव कई बर्दाश्त नहीं करती हूं ना खुद के लिए नहीं अपनी बेटी के लिए क्योंकि मैं अपने नियम बदल चुकी हूं अब बदलने की बारी आपकी है


जय बाबा भोलनाथ












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